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पापड़ (Papad)
वर्तमान युग में पापड़ और बड़ियां बहुत ही लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है। पापड़ मुख्यतः वृत (Circular) आकार का बनाया जाता है। यह दाल, नमक, मसाला इत्यादि मिलाकर बनाया जाता है। इन रचकों की मात्राओं में परिवर्तन करके विभिन्न प्रकार के पापड़ बनाये जाते हैं। जो अलग-अलग व्यक्तियों के स्वाद के अनुकूल उपयुक्त होते हैं। पापड़, पहले घर की स्त्रियों के द्वारा अपने उपयोग के लिए बना लिए जाते थे। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में व्यस्तता इतनी बढ़ गयी है कि ये चीजें बाजार से बनी बनाई खरीद कर उपयोग करना ही ज्यादा सुविधाजनक हो गया है। अतः अब पापड़ और बड़ी का उत्पादन लघु उद्योग या कुटीर उद्योग के रूप में करने की अच्छी सम्भावना हो गयी है, क्योंकि इन वस्तुओं का उपयोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इस समय यह सामान्य पौष्टिक भोजन का एक अंग बन गया है। सरकार के द्वारा यह उद्योग खास कर लघु उद्योग में करने के लिए आरक्षित कर दिया गया है। सेन्ट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट, मैसूर (Central Food Technological Research) के द्वारा पापड़ बनाने की विधि विकसित की गई है, जिससे इन वस्तुओं की क्वालिटी में बहुत सुधार हो गया है तथा अधिक दिन तक रखने से यह खराब नहीं होती।
पापड़ और बड़ियां सामान्य उपयोग की चीजें हैं। इनके अलावा इनकी सप्लाई के मुख्य स्थान हैं – कैंटीन, सिनेमा हॉल, होटल, एयर पोर्ट, सेना इत्यादि। इसलिए ऐसा अनुमान किया जाता है कि जनसंख्या में वृद्धि और सामाजिक रहन-सहन के स्तर में विकास के साथ पापड़ एवं बड़ियों की उपयोगिता में वृद्धि होती जायेगी। अतः पापड़ एवं बड़ी निर्माण उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है।
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पापड़ बनाने की विधि:
रात में उड़द की दाल को (छिलके सहित) पानी में भिगो दिया जाता है और प्रातः काल धोकर इसका छिलका उतार दिया जाता है। इसमें से एक किलो दाल लेकर धूप में फैला दी जाती है। ताकि इसका कुछ पानी सूख जाये। इस दाल को सिल पर पीसकर पिट्ठी बना ली जाती है। अगर व्यापारिक रूप से पापड़ बनाना है तो सिल पर पीसने से काम नहीं चलेगा, बल्कि पिट्ठी पीसने की मशीन रखनी पड़ेगी। यह मशीन एक हार्सपावर से चलती है और घंटे में लगभग 20-25 किलो दाल की पिट्ठी पीस देती है।
इस पिट्ठी में शेष रचक मिलाकर सख्त आटे की तरह गूंद लिया जाता है और घी चुपड़ी हुई कुंडी या ओखली में इसको अच्छी तरह कूट लिया जाता है ताकि इसमें लोच पैदा हो जाये। अच्छी तरह कुट जाने के बाद इसके छोटे-छोटे गोल-गोल पेड़े बनाकर और इन्हें चकले पर बेलकर पापड़ बना लिए जाते हैं। पापड़ बेलते समय थोड़ा-थोड़ा तेल चकले-बेलन पर लगाते रहना चाहिए।
काली मिर्चो के स्थान पर लाल मिर्चो का भी प्रयोग किया जा सकता है। तेल मसाले के पापड़ बनाने के लिए थोड़ी मिर्च भी पिट्ठी में मिलाई जाती है।
व्यापारिक रूप में पापड़ बनाते समय उक्त मूल विधि में थोड़ा परिवर्तन कर लिया जाता है। काली मिर्चो को बारीक नहीं पीसते बल्कि पिट्ठी पीसने वाली ग्राइंडिंग मशीन द्वारा दलिए की तरह मोटा-मोटा पीस लिया जाता है, जीरा अलग से रख लिया जाता है, तो ये दानें पापड़ों में दिखाई देते हैं।
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अचार (Pickle)
अचार भारतीय भोजन की थाली में विशेष स्थान रखता है। पुराने समय से घरों में महिलाओं द्वारा आम के मौसम में अचार बनाने की परम्परा रही है। आज भी ग्रामीण महिलाएं घर में उपयोग करने के लिए अचार बनाने का काम करती हैं। अचार सब्जियों और कच्चे फल से तैयार किये जाते हैं। खट्टे आमों का आचार अच्छा बनता है। गले, सड़े हुए फलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन्हें हाथ से रगड़कर धो लेना चाहिए। इनको स्टैनलैस स्टील के चाकू से लम्बाई में काट कर गुठली को निकाल लिया जाता है। इन टुकड़ों को तुरंत ही 2-3 प्रतिशत के नमक के घोल में रखा जाता है, ताकि आम के टुकड़े काले न पड़ने पाएं ।
वैश्विक अचार बाजार को चलाने वाले प्रमुख ड्राइवरों में स्वास्थ्य लाभ शामिल हैं जो अचार की पेशकश करते हैं। रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने वाला होने के अलावा, अचार के कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं जो वैश्विक स्तर पर बाजार की वृद्धि को गति दे रहे हैं। अचार सिद्ध एंटीऑक्सिडेंट हैं जो मानव शरीर पर हमला करने के लिए मुक्त कणों को रोकता है। वे पाचन में भी मदद करते हैं क्योंकि उनमें प्रोबायोटिक गुण होते हैं। वे प्राकृतिक पोषक तत्वों जैसे लोहा, विटामिन, कैल्शियम, पोटेशियम और अन्य का भी स्रोत हैं । संपन्न खाद्य सेवा क्षेत्र ने भी दुनिया भर में अचार की बढ़ती मांग में योगदान दिया है।
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आम के आचार की सामग्री
संघटक | मात्रा (ग्राम) |
आम के टुकड़े | 900 |
पिसा हुआ नमक | 225 |
पिसी हुई मेथी | 113 |
कलौंजी, मोटी पिसी हुई | 28 |
हल्दी का पाउडर | 28 |
लाल मिर्च, पिसी हुई | 28 |
काली मिर्च पिसी हुई | 28 |
सरसों का तेल | आवश्यक मात्रा में |
निर्माण विधि:
आम के टुकड़ों को आवश्यक मात्रा में पिसे हुए नमक के साथ अच्छी तरह मिला लिया जाता है। इन टुकड़ों को शीशे के जार या चीनी मिट्टी के बर्तनों में डालकर धूप में चार-पांच दिन या तब तक रखा जाता है, जब तक कि टुकड़ों से पानी बाहर न आ जाए और उनके हरे छिलके पीले न पड़ जाएं। इसके बाद ऊपर लिखे मसालों को कुछ तेल के साथ आम की फांकों में अच्छी तरह मिला लिया जाता है।
अचार भरने के लिए साफ व सूखे चीनी मिट्टी के जार प्रयोग किए जाते हैं। इन मसाले लगे हुए टुकड़ों को जारों के अन्दर इस प्रकार दबा-दबाकर भरा जाता है कि जार के अन्दर हवा न रह सके। अब इसमें सरसों का तेल इतना भरिए कि अचार पूरी तरह ढंक जाए। दो-तीन सप्ताह के बाद आचार तैयार हो जाता है। इस अवधि में उसको बार-बार देखते रहना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो इसमें तेल और भी मिलाया जा सकता है।
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मसाला उद्योग (Spice Industry)
भारत प्राचीन काल से ही मसालों का घर माना जाता रहा है। भारत में विभिन्न प्रकार के मसालों की अच्छी उपज होती है। इनमें हल्दी मिर्च, धनिया आदि मुख्य हैं, जिनको प्रायः सभी भारतीय घरों में उपयोग किया जाता है। यह संसाधित (Processed) खाद्य पदार्थों की सुगन्ध तथा स्वाद बढ़ाने का बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
चूंकि वर्तमान समय में मनुष्य का जीवन बहुत ही व्यस्त हो गया है और उनके पास प्रतिदिन के उपयोग के लिए मसाले पीसने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। इसके साथ ही अच्छी गुणवत्ता का मसाला पाउडर तथा मिक्स मसाले घर में बनाना सम्भव नहीं है, अतः वह तैयार (Readymade) मसाला पाउडर बाजार से खरीद लेना पसंद करते हैं।
भारत में मसाले पाउडर का उत्पादन ऑर्गनाइज़्ड तथा अन-ऑर्गनाइज़्ड दोनों ही क्षेत्रों में किया जाता है। इस व्यवसाय में बड़ी-बड़ी कम्पनियां हैं जो साधारण मसाला पाउडर के अलावा करी पाउडर, मिक्स मसाला पाउडर, चाय मसाला, गरम मसाला, मीट मसाला, पावभाजी मसाला इत्यादि उच्च गुणवत्ता का उत्पादन करते हैं। फिर भी लघु उद्योग स्थापित करके मसाला पाउडर बनाकर मुनाफे के साथ व्यवसाय सुचारु रूप से चलाने की अच्छी सम्भावना है, क्योंकि लघु उद्योगों के द्वारा उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उत्पादन किया जाता है, तथा लघु उद्योगों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मूल्य अपेक्षाकृत कम होता है।
उपयोग
यह सर्व विदित (Well known) है कि मनुष्य के भोजन के लिए मसाल पाउडर बहुत ही आवश्यक पदार्थ है। यह प्रत्येक भारतीय रसोईघर में उपयोग किया जाता है। प्राचीन काल से ही हल्दी का उपयोग कॉस्मेटिक, दवाइयां बनाने तथा प्रिजरवेटिव के रूप में किया जा रहा है। इसका उपयोग टेक्सटाइल तथा पेन्ट उद्योग में भी किया जाता है। मिर्च का उपयोग अचार, सॉस, केचप इत्यादि में किया जाता है। इसका उपयोग बहुत सारी भारतीय दवाएं जैसे टायफस (Typhus), ड्रॉप्सी (Dropsy), गाउट (Gout), डिस्पेप्सिया (Dispepsia) बनाने तथा हैजे (Cholera) के इलाज के लिए किया जाता है। मसालों में कॉर्मिनेटिव (Carminative), स्टिमुलेटिंग (Stimuletinh), डाइजेस्टिव (Digestive), गुण होते हैं। जिसके कारण इनको दवाओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
मार्केट सर्वेक्षण
मसाला पाउडर विशेष रूप से व्यक्तिगत उपभोक्ता वस्तु हैं। इसकी बिक्री के करने के लिए अनवरत अवसर प्राप्त है। भारतीय बाजार में इसकी बिक्री की अच्छी सम्भावना है, बशर्ते कि अपेक्षाकृत कम मूल्य, पर अच्छी गुणवत्ता का सामान उत्पादित किया जाये। मसाला पाउडर के थोक उपभोक्ता: होटल, रेलवे कैंटीन, कैंटीन (Armed Forces Canteen) सेना की इत्यादि है। अतः जनसंख्या की वृद्धि एवं रहन-सहन के स्तर में विकास के साथ मसाला पाउडर का मार्केट क्षेत्र बढ़ता जाएगा। स्वदेशी मार्केट के अतिरिक्त अच्छी क्वालिटी के मसाला पाउडर के निर्यात की भी अच्छी सम्भावना है।
कच्चा मसाला
- मिर्च (Chilli)
- हल्दी (Turmeric)
- धनिया (Coriander)
मशीन एवं उपकरण
- ड्रायर (Dryer)
- पलवराइजर (Pulverizer)
- ग्राइंडर (Grinder)
- मसाला पाउडर ग्रेडर (Grader)
- क्लीनर (Cleaner)
- बैग सीलिंग मशीन (Bag Sealing Machine)
उत्पादन विधि
सर्वप्रथम बिना पिसे मसाले के बालू, धूल, पत्थर, लोहा, कंकड़ अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है। साफ किये गये कच्चे मसाले को धूप में या ड्रायर में सुखा लिया जाता है। सूखे हुए मसाले को पलवराइजर (Pulveriser) सया ग्राइंडर (Grinder) में डालकर आवश्यक गुणवत्ता वाला तथा महीन मसाला पाउडर तैयार कर लिया जाता है। पीसे गये मसाला पाउडर को भिन्न-भिन्न मेश की छलनी से छानकर इसकी ग्रेंडिंग कर ली जाती है। इसे तोलकर कई साइजों के आकर्षक छपे हुए पॉलिथीन बैग में पैक कर के सील कर दिया जाता है। मसाला पाउडर पैक किये गये बैगों को कार्ड बोर्ड बॉक्स पैक करके बिक्री के लिए भेजा जाता हैं।
डबल रोटी उद्योग (Bread Industry)
डबल रोटी निर्माण को बेकरी उद्योग कहा जाता है। भारत में इस उद्योग का खाद्य संसाधन के अन्तर्गत बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यह उद्योग आजकल देश के एक वृहत हिस्से (Large Part) :शहरों, तथा देहातों (गाँवों) तक लोगों को पौष्टिक आहार प्रदान करता है। यह इस समय बहुत ही लोकप्रिय नाश्ता हो गया है। इसका उपभोग दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। खास करके बच्चों के लिए तो यह एक बहुत उपयुक्त खाद्य पदार्थ होता है। क्योंकि खाने में स्वादिष्ट एवं सुपाच्य (Easily Digestible) होता है। बहुत बार सरकारी संस्था द्वारा या स्वयंसेवी संस्था के द्वारा बच्चों के लिए फीडिंग प्रोग्राम में डबल रोटी की आपूर्ति की जाती है। बहुत बार देहातों के गरीबों तथा जन जातियों के बीच स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत डबल रोटी वितरण किया जाता है। इसके अतिरिक्त जिस क्षेत्र में गेहूं का आटा या मैदा उपभोग करने का प्रचलन नहीं है, वहां के लिए डबल रोटी बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
डबल रोटी एक स्वास्थ्य वर्धक तथा तैयार खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग करना बहुत ही उपयुक्त एवं सुविधाजनक है। साथ ही यह एक कम खर्चीला भोजन है।
चूंकि वर्तमान समय में देश में पौष्टिक भोजन की आपूर्ति की ओर लोगों में काफी जागरूकता हो रही है। इस तथ्य को मद्दे नजर रखते हुए बेकरी उद्योग का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह उद्योग देश के सामाजिक उत्थान के अलावा आर्थिक उत्थान में भी सहायक सिद्ध है। यह अपने देश में उत्पादित गेहूं के पूर्ण उपयोग तथा देशवासियों के स्वास्थ्य वर्धक में महत्वूपर्ण भूमिका अदा कर रहा है। अतः यह उद्योग देश की गरीबी दूर करने तथा अच्छी संस्था में लोगों को रोजगार मुहैया करने में काफी हद तक सहायक हो सकता है। इस उद्योग की शुरुआत कम पूंजी लगाकर की जा सकती है। ऐसे यह उद्योग खास करके लघु उद्योग में स्थापित करने के लिए सरकार के द्वारा आरक्षित किया गया है।
मार्केट सर्वेक्षण
डबल रोटी मूलतः सामान्य उपयोग की वस्तु है। भारत इस प्रकार के उत्पाद के लिए बहुत ही विशाल मार्केट प्रदान करता है। सामाजिक जागरूकता तथा रहन-सहन के स्तर में वृद्धि होने के साथ तैयार खाद्य पदार्थ की मांग बहुत ही बढ़ती जा रही है। मनुष्य की व्यस्तता इतनी बढ़ती जा रही है कि पैक्ड-फूड उनके लिए बहुत ही उपयुक्त भोजन है। इसके साथ ही प्रचार-प्रसार के साधनों की वृद्धि भी इस प्रोड्क्ट को लोकप्रिय बनाने एवं इसकी मांग बढ़ाने में बहुत ही सहायक हो रही है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ भी इसका उपभोग काफी बढ़ रहा हैं । सामान्य मार्केट सर्वोक्षण के अनुसार बेकरी उद्योग के द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान उत्पादन क्षमता इसे पूर्ति करने में सक्षम नहीं हो पा रही है। भविष्य में इसकी मांग कई गुना बढ़ने का अनुमान है। अतः यह उद्योग स्थापित करके सुगमतापूर्वक चलाने की काफी सम्भावना है, बशर्ते कि अपेक्षाकृत कम उत्पादन लागत में अच्छी गुणवत्ता वाले माल की आपूर्ति की जाये ।
कच्चा माल
डबल रोटी उत्पादन के लिए आवश्यक मुख्य कच्चा माल: गेहूं का आटा, मैदा, लिविंग एजेंट जैसे बेकर यीस्ट, ब्रान, लैक्टिक एसिड, साधारण नमक, पानी, कण्डेन्स्ड मिल्क, खाद्य मिल्क पाउडर, वनस्पति तेल, रिफाइंड खाद्य तेल, बटर, घी, चीनी, शहद, द्रव ग्लूकोज, स्टार्च, शकरकंदी का आटा, मूंगफली का आटा, विटामिन, ग्लिसरीन लाइम वॉटर इत्यादि। इसके अलावा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे – कैल्शियम फास्फेट, कैल्शियम कार्बोनेट, एसेटिक एसिड या लैक्टिक एसिड, विनेगर, सोडियम डाइएसिटेट तथा सोडियम पाइरोफॉस्फेट इत्यादि का उपयोग किया जाता है।
मशीन एवं उपकरण
- डफ निडिंग मशीन (Dough Kneading Machine)
- ब्रेड स्लाइसिंग मशीन (Bread Slicing Machine)
- क्रीम मिक्सिंग मशीन (Cream Mixing machine)
- फरमेंटेशन टैंक (Fermentaion Tank)
- ओवन (Oven)
- मोल्ड बॉक्स (Mould Box)
उत्पादन विधि
उपयुक्त गुणवत्ता के कच्चे माल का उपयोग करके आधुनिक मशीन एवं उपकरण के द्वारा सुपाच्य एवं स्वास्थ्य वर्धक डलब रोटी का उत्पादन किया जा सकता है। कच्चे माल की उचित मात्रा को आटा गूथने की मशीन में ले लिया जाता है। सभी रचकों को गूंथकर डफ तैयार कर लिया जाता है। गूंथे हुए डफ में क्रीम मिलाकर फरमेण्टेशन के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद इच्छित साइज के अनुसार फरमेण्टेड डफ में से टुकड़े काट लिये जाते हैं। इन्हें भट्टी में सेंककर डबल रोटी तैयार कर ली जाती है। इसे ठंडा करके स्लाइस काट ली जाती है। तैयार प्रोड्क्ट् की उपयुक्त ढंग से रैपिंग करके मार्केटिंग के लिए भेजा जाता है।
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