Laghu v Griha Udyog (Swarozgar Pariyojanayen) Kutir Udyog, Small Scale Industries (SSI)

लघु उद्योग का भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही भारत के लघु व गृह  उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। उद्यमी बनना या उद्यम स्थापित करना आज काफी आसान हो गया है । क्योंकि हमारी सरकार  उद्यम स्थापित के लिए उद्यमियों को कई तरह से प्रोत्साहित करती   है ।  इसके लिए सरकार विभिन्न प्रकार  के प्रशिक्षणों का आयोजन करती   है  जिससे उद्यमियों को उद्योग स्थापना का ज्ञान दिया जा सके । यदि उन्हें उद्यम स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता की आवयश्कता है तो उन्हें विभिन्न ऋण योजनाओं के माध्यम से ऋण उपलब्ध करवाया जाता है । साथ ही उद्योग स्थापित करने में यदि उन्हें कोई परेशानी आ रही है तो उन्हें उद्योग चलाने हेतु सहायता प्रदान करवाई जाती है ।

सरकार इस बात के लिए खास तौर पर प्रयत्नशील हैं  कि देश भर में उद्यमिता पले व बढे तथा एक ऐसी संस्कृति पल्लवित हो जिसमे स्वरोज़गार, लघु उद्योगों का उत्पादन एवं छोटे उद्यमों की लाभप्रदता बढे । साथ ही जो संभावी अथवा नव उद्यमी हैं  उनके कौशल को निखारा जाये । इसके लिए लघु उद्यम विकास संस्थान विभिन्न प्रकार के लाभदायक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं ।

लघु उद्योगों  ने बीते 50  साल में प्रगति के अनेक सोपान तय किये हैं । हमारे देश के सामाजिक एवं आर्थिक  विकास में इन उद्योगों  का योगदान अहम साबित हुआ है । इन्होने कम पूँजी से रोज़गार उपलब्ध कराये हैं । ग्रामीण इलाको में औद्योगीकरण का प्रकाश फैलाया है तथा क्षेत्रीय असंतुलन में कमी को दूर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । लघु उद्योग में हुए विकास ने आधुनिक तकनीक अपनाने तथा लाभकारी रोजगार में श्रम शक्ति का अवशोषण करने के लिए उद्यमशीलता की प्रतिभा का उपयोग करने को प्राथमिकता प्रदान की है जिससे उत्पादकता और आय के स्तर को बढ़ाया जा सके। लघु उद्योग उद्योगो के प्रसार तथा स्थानीय संसाधनों के उपयोग में सुविधा प्रदान करते हैं।

माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी मुद्रा नामक योजना के अन्तर्गत बेहद छोटे उद्यमियों को 50,000 रूपए  से लेकर 10 लाख रूपए तक के कर्ज़ उपलब्ध कराये जाते हैं । इस योजना से लघु उद्योगों के लिए प्रगति का एक नया मार्ग प्रशस्त हुआ है ।

लघु उद्योग (Small Scale Industry), स्वरोजगार (Self Employment) व प्रबन्ध क्षेत्रों में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं। लघु, कुटीर व घरेलू उद्योग परियोजनाएं नए उद्यमी व संभावित उद्यमियों को उद्योग - व्यवसाय की स्थापना व संवर्द्धन की दिशा में प्रेरित करती हैं जिससे वे देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान बढ़ा सकें।

"कार्य परिश्रम से सिद्ध होते हैं, मनोरथ से नहीं । क्योंकि सोये हुए जंगल के राजा शेर के मुख्य में भी हिरण स्वयं आकर प्रविष्ट नहीं होते हैं ।"

शासन की योजनाएं तो अपनी जगह कायम हैं, इसका लाभ उठाने  के लिए उद्यमियों को ही आगे आना होगा । आज जो भी उद्यमी सफलता के शिखर पर खड़े है उन सभी ने इन योजनाओं का लाभ उठाया और अपने परिश्रम के बल पर अपनी इकाइयों की सफलता सुनिश्चित की ।

पैसा जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है । हर व्यक्ति अपने जीवन में पैसा कमाना चाहता  है । 

अगर कोई व्यक्ति अपना खुद का उद्योग स्थापित  करना चाहता है तो उसके पास  अच्छी प्लानिंग और बिज़नस शुरू करने के लिए पर्याप्त राशि होनी चाहिए । इसका मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि कोई कम पैसे मे अपना स्वयं का उद्योग शुरू नहीं कर सकता ।  लघु उद्योग में हुए विकास ने आधुनिक तकनीक अपनाने तथा लाभकारी रोजगार में श्रम शक्ति का अवशोषण करने के लिए उद्यमशीलता की प्रतिभा का उपयोग करने को प्राथमिकता प्रदान की है जिससे उत्पादकता और आय के स्तर को बढ़ाया जा सके। लघु उद्योग उद्योगो के प्रसार तथा स्थानीय संसाधनों के उपयोग में सुविधा प्रदान करते हैं। 

 

इस पुस्तक में वित्तीय परियोजना का विवरण दिया गया है और इन वित्तीय परियोजना के माध्यम से विभिन्न उद्योगो की उत्पादन क्षमता (Production Capacity), भूमि एवं भवन (Land & Building), मशीन एवं उपकरण (Machinery & Equipment) तथा कुल अनुमानित लागत (Estimated Capital Investment) आदि की जानकारी दी गयी है। साथ ही कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं (Raw Material Suppliers), संयंत्र और मशीनरी के आपूर्तिकर्ताओं (Plant & Machinery Suppliers) के पते दिए गए है जिससे उद्यमी ज्यादातार लाभ उठा सकें। 

 

नये उद्यमियों, व्यवसायिओं, तकनीकी परामर्शदाताओं आदि के लिए यह पुस्तक अमूल्य मार्गदर्शक सिद्ध होगी।


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